यह है मामला
Feed Back Unit का गठन फरवरी 2016 में दिल्ली सरकार के अधिन काम करने वाले कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और कामकाज पर नजर रखने के लिए दिल्ली सरकार ने किया था. 29 सितंबर 2015 में दिल्ली सरकार की केबिनेट मीटिंग में FBU के गठन की मंजूरी दी गई थी और उसके बाद तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस ने 28 अक्टूबर 2015 को दिल्ली के मुख्यमंत्री को FBU गठन का प्रपोजल दिया, जिसे मंजूर किया गया. इसके मुताबिक FBU सेक्रेटरी विजिलेंस को रिपोर्ट करेगी. इस यूनिट का गठन फरवरी 2016 में किया गया. शुरूआत में 20 भर्तियां की जानी थी, जिसके लिए दिल्ली सरकार के उधोग विभाग की 22 पोस्ट को खत्म कर के लिया जाना था, लेकिन बाद में दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्यूरो की 88 पोस्ट में से 20 भर्तियां FBU में करने की बात हुई, क्योंकि ACB भी विजेलेंस विभाग के अधिन काम करता है. हालांकि, ACB में जिन 88 पोस्ट भरने की बात की जा रही थी, उसका भी सिर्फ प्रपोजल था.
उपराज्यपाल ने जांच के लिए भेजा
दिल्ली में किसी भी नई भर्तियों, पोस्ट का गठन या फिर रिटार्यड कर्मचारियों की भर्ती के लिए LG की मंजूरी जरूरी है, लेकिन इसके बावजूद इसकी अनदेखी की गई. मुख्यमंत्री के सचिव ने कहा की दिल्ली से जुड़े मामलों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बिना उप राज्यपाल को बताये फैसला ले सकते हैं, लेकिन ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहा था और इसका कोई फैसला नहीं हुआ था. इसके बाद जब हाईकोर्ट का फैसला आया तो Feed Back Unit की मंजूरी के लिए दो बार दिल्ली सरकार की तरफ से LG को मंजूरी के लिए फाइल भेजी गई लेकिन उप राज्यपाल ने इस मामले में नियमों की अवहेलना और पूरी जांच के लिए मामला CBI को भेज दिया.
इजाजत नहीं ली गई थी...
CBI ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि भर्ती के लिए तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस सुकेश कुमार जैन ने मनीष सिसोदिया को प्रपोजल दिया कि AR Department से मंजूरी ले ली जाएगी, जिसको लेकर मनीष सिसोदिया ने सहमति दी, लेकिन सुकेश कुमार ने इसकी जानकारी AR Department को दी ही नहीं. जांच के दौरान विजिलेंस विभाग के अधिकारी ने बताया कि भर्तियों के लिए आवेदन जारी करने के बाद इसकी जानकारी AR Department को दी गई, और कहा गया कि ये भर्तियां उधोग विभाग में खत्म की जा रही पोस्ट की जगह होगी, लेकिन तय किया गया कि ये भर्तियां ACB में की जाने वाली 88 भर्तियों में से की जाएगी, जबकि AR Department से कोई जानकारी या मंजूरी नहीं ली गई है. इन भर्तियों के लिए या यूनिट के गठन के लिए उप राज्यपाल से कोई मंजूरी नहीं ली गई है इस बात की जानकारी मनीष सिसोदिया को भी थी.
गलत तरीकों से खर्चों को लेकर उठे थे सवाल
जांच में ये भी पता चला कि 1 करोड़ का बजट रखा गया था और 17 लोगों को भर्ती किया गया और दो बार में 5-5 लाख कर के 10 लाख रुपये यूनिट को दिए गए. शुरूआत में ACB के शम्स अफरोज़ को इस यूनिट के एडमिन और फाइनेंस के डिप्टी डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी गई, जो उन्हें अपने Anti-Corruption Bureau में ACP के पद के साथ पूरी करनी थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद आदेश जारी किया गया कि मुख्यमंत्री के तत्कालीन एडवाइजर आर. के. सिन्हा इस के मुखिया के तौर पर जिम्मेदारी संभालेगे. इसके बाद जब शम्स अफरोज ने यूनिट में गलत तरीकों से खर्चों को लेकर बात की तो आर के सिन्हा ने चिट्ठी लिख कर कहा कि शम्स अफरोज का इस यूनिट से कोई मतलब नहीं है और उन्हे SS Funds की जानकारी ना दी जाए.
PM’s plan is to slap several false cases against Manish and keep him in custody for a long period. Sad for the country! https://t.co/G48JtXeTIc
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 16, 2023
अरविंद केजरीवाल का बयान
CBI द्वारा फीडबैक यूनिट मामले में मनीष सिसोदिया के खिलाफ 'FIR' दर्ज करने के मामले पर अरविंद केजरीवाल ने Tweet किया. CM अरविंद केजरीवाल ने अपने Tweet में लिखा,
'प्रधानमंत्री द्वारा मनीष सिसोदिया के खिलाफ कई झूठे मामले थोपकर, उन्हें लंबे समय तक जेल में रखने की योजना'..'ये देश के लिए दुखद'. इससे पहले भलस्वा लैंडफिल साइट पर निरीक्षण कर रहे अरविंद केजरीवाल से जब मनीष सिसोदिया के खिलाफ एक और FIR पर पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'हम अभी कूड़े पर बात कर रहे हैं, लेकिन वो भी कूड़ा ही है.'